रंग गया है आसमान सिंधूरी पत्ते सा
आदमी है उदास बेवा के मत्थे सा
रीत गया दीप मगर बाती अध् जली है
राह अभी चलने को शेष बहुत परी है
सो गया है चित्रकार आसमान रंग कर के
आदमी की मुस्कान रंगने को परी है
आदमी है उदास बेवा के मत्थे सा
रीत गया दीप मगर बाती अध् जली है
राह अभी चलने को शेष बहुत परी है
सो गया है चित्रकार आसमान रंग कर के
आदमी की मुस्कान रंगने को परी है
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