मंदिर में जलते हुए उस दीप सा मै हु तुम्हारा
जिसमे बाती मेरे देह की और तेल तेरी अश्रु धारा
मै जला तिल -तिल सदा करता रहा पथ पर उजाला
हो गई जब शाम घबरा कर पथिक ने तब पुकारा
घिर गई कितनी घटाए आंधियो ने कहर ढाया
मै तिमिर का वक्च चीरे ,अश्रु पी कर ,मुस्कराया .
जिसमे बाती मेरे देह की और तेल तेरी अश्रु धारा
मै जला तिल -तिल सदा करता रहा पथ पर उजाला
हो गई जब शाम घबरा कर पथिक ने तब पुकारा
घिर गई कितनी घटाए आंधियो ने कहर ढाया
मै तिमिर का वक्च चीरे ,अश्रु पी कर ,मुस्कराया .